शिक्षा का अधिकार
इस कानून के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है
1- 6 से 14 वर्ष के बच्चा को अनिवार्य तथा नि:शुल्क शिक्षा प्रदान की जायेगी।
2- आठवीं कक्षा तक कोई भी बोर्ड की परीक्षा नहीं होगी। 14 वर्ष आयु की अवधि में किसी भी बालक को किसी कक्षा में दूसरे वर्ष के लिये उसी कक्षा में पढ़ने के लिये बाधित नहीं किया जायेगा और न ही उसे विद्यालय सें निष्कासित किया जायेगा।
3- आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले प्रत्येक विद्यार्थी को प्रमाण पत्र प्रदान किया जायेगा।
4- विद्यालयों में आचार्य तथा छात्र संख्या प्रतिषत निश्चित रहेगी।
5- यह कानून जम्मू कश्मीर तथा अल्पसंख्यक विद्यालयों को छोड़ कर देश के सभी भागों में लागू होगा।
6- आर्थिक दृष्टि से लाभों से वंचित 25 प्रतिशत बालक बालिकाओं को सभी प्राईवेट विद्यालयों में प्रथम कक्षा में प्रवेश अनिवार्य रूप से मिलेगा।
7- प्रत्येक माता-पिता अथवा बालको के संरक्षक का दायित्व होगा कि वह लड़की को पडोस के विद्यालय में प्रथम कक्षा में प्रवेश दिलायें।
8- आयु के प्रमाणपत्र न होने की स्थिति में प्रवेश के लिये कोई भी बाधा उपस्थित नहीं की जायेगी।
9- प्रशिक्षित अध्यापकों को विद्यालयों में अध्यापकों को पढ़ाने की अनुमति होगी।
10- अध्यापकों को आबादी की मतगणना कार्य के अतिरिक्त किसी भी कार्य में नहीं लगाया जायेगा।
11- इस बिल कानून ने बनने पर क्रियान्वयन के पश्चात उचित अधिकारी की स्वीकृति अथवा मान्यता के बिना सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा विद्यालय को स्थापित नहीं करने दिया जायेगा।
12- अध्यापकों को टयूशन करने के लिये मना किया गया है। शारीरिक दण्ड देना अपराध स्वीकार किया गया है।
इस कानून के माध्यम से चेतावनी दी गई है कि जो भी इन प्रवाधनों की उल्लंधन करेगा उस व्यक्ति को एक लाख रूपये जुर्माना होगा। शिक्षा के अधिकार कानून के कई प्रावधानों की आलोचना हुई है।
हैदराबाद में सहस्त्रों शिक्षाविद् नें इस कानून के विरोध में प्रदर्र्शन किया। कोल्हापुर महाराष्ट्र की 700 महिलाओं ने भी विरोध प्रकट किया। भोपाल में प्रदर्शन हुआ और रोष प्रकट किया गया।
बिल की समीक्षा :
1- उच्चतम न्यायालय ने 1993 के उन्नीकृष्णनन ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि 14 वर्ष की आयु को पूर्ण करने तक हर बालक/बालिका का नि:शुल्क तथा अनिवार्य रूप से शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है। इसमें 6 वर्ष से नीचे के विद्यार्थियों का भी समावेश किया गया है।
- 2009 के कानून के लागू होने पर 6 वर्ष की आयु से नीचे बच्चे जिन की संख्या 17 करोड़ है उनके लिये पोषक आहार, स्वास्थ्य संरक्षण और शिशु शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित ही रहेंगे।
- 19 करोड बच्चे जो 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के अन्दर आते है उनको शिक्षा उस ढंग से प्रदान की जायेगी जैसे राज्य सरकारें उचित समझेगी।
2- इस काननू में तीन प्रमुख न्यूनताएँ है।
- · संविधान की धारओं के आधार पर सभी छात्रों को समान रूप से गुणवता तथा अच्छी शिक्षा प्रदान करने की कानून में निश्चिता नहीं है।
- · सरकारी विद्यालय समाप्त होंगे। 2009 के शिक्षा का अधिकार को विशेष श्रेणी के विद्यालयों जैसे केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और निजी तथा सरकार की सांझादारी से 6000 नये आर्दश विद्यालयों की स्थापना यह सब कानून की सीमा से बाहर रहेंगे। अत: बालक अच्छी शिक्षा से वंचित ही किया गया है।
- · शिक्षा में निजीकरण तथा व्यापारीकरण को बढ़ावा मिलेगा। इन तीन प्रमुख आपतियों के अतिरिक्त 2009 के बिल में अनेक आपतिजनक प्रावधानों की आलोचना की जा रही है
1- राज्य और केन्द्र के बीच फंड का बटवारा नहीं हुआ है। राज्य सरकारें चाह रही है कि केन्द्र ज्यादा से ज्यादा जिम्मेदारी उठाये। वित्ताीय स्पष्टता न होने से समग्रता से इस कानून के क्रियान्वयन में सन्देह उपस्थित हो रहा है।
2- 6 वर्ष के नीचे के बालक के जो प्राथमिक शिक्षा की नींव है उसे सृदृढ़ करने का विचार नहीं किया गया। करोड़ो बच्चे इस कानून के दायरे में नहीं रहेंगे।
3- केपीटेशन फीस तथा दान की व्याख्या तो की गई है। शुल्क के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया। प्राईवेट संस्थाओं के व्यापारीकरण में वृध्दि होगी।
4- राजकीय प्राईवेट संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों की गुणात्मक शिक्षा में असमानता तथा असुंतलन बना रहेगा।
5- संविधान की धारा 350 ए जिस में बालको मातृभाषा में पढ़ने का अधिकार दिया गया है। उसे नये कानून में यह अधिकार प्राप्त नहीं होगा।
6- विकलांग बच्चों को कानू के प्रावधानों से बाहर रखना उनके साथ घोर अन्याय किया गया है। 75 प्रतिशत इस श्रेणी के बालक विद्यालयों में है नहीं ।
7- माता-पिता को दायित्व दिया गया है कि वह बालकों को विद्यालय में प्रवेश दिलाएं सरकारों को इस दायित्व से मुक्त किया गया है।
8- कानून की अवहेलना पर एक लाख रूपये का दण्ड निश्चित किया गया है। यह राशि स्कूल फण्ड से अथवा विद्यार्थियों पर अतिरिक्त शुल्क लगाकर दे दी जायेगी। उल्लधंनकर्ता को कोई दण्ड नहीं मिल पायेगा।
9- पड़ोसी स्कूलों को पारिभाषित नहीं किया गया। 1966 में कुठारी आयोग ने पड़ोसी स्कूलों की सिफारिशों की थी । 1986 में शिक्षा की राष्ट्रीय नीति जिसे संसद ने स्वीकृति प्रदान की थी उसमें भी नजदीक के विद्यालयों को पारिभाषित किया गया था। 1992 में इस सम्बन्ध में संशोधन हुआ था। इस सब कार्यवाही के पश्चात भी राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है कि वह कैसे और कहां पड़ोसी विद्यालय स्थापित करें। अस्पष्ट अवधारणा के कारण्ा क्रियान्वयन भी अस्पष्ट दिखाई दे रहा है।
10- यह कानून गरीब बच्चों को घटिया पढ़ाई के स्तर के विद्यालयों में पढ़ने को बाधित करेगा। ऊंँच-नींच की खाई बढ़ जायेगी।
11- बिल में आर्थिक व्यय की सभ्भावनओं को नहीं दर्षाया गया अत: बिल के क्रियान्वयन का दायित्व कौन सभ्भालेगा। इस महत्वपूर्ण बिन्दू को छोड़ दिया गया है।
12-
विद्यालयों में 10 प्रतिषत पद रिक्त रखने की अनुमति है। छोटे विद्यालयों तो अधिकतर खाली ही खाली दिखाई देगें। एकल विद्यालयों तो बंद ही हो जायेंगे।
श्री सिब्बल जी ने संसद में कहा है कि यह बिल ऐतिहासिक हैं। शिक्षा में गुणवता, समाजिक समरसता तथा समानता लायेगा। आलोचना की जा रही है और यह किसी सीमा तक ठीक भी है कि वर्तमान विद्यालयों की स्थिति उनके संसाधनों की ओर ध्यान दिये बिना शीध्रता में बिल लाकर हम मछली तो पकड़ना चाहते हैं लेकिन डंडू हाथ में आयेगा।
1- पहली कक्षा में 80 प्रतिशत प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी 9 वर्ष की आयु तक पहुँचने पर केवल 56 प्रतिशत रह जाते है।
2- इन में से आधे बच्चे 8 वीं कक्षा तक पहुँच पढ़ाई पूर्ण कर लेते है।
3- 10 प्रतिशत विद्यार्थी आगे चलकर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की परीक्षा उतीर्ण करते है।
4- अनुसूचित तथा अनुसूचित जनजातियों की लड़कियाँ प्रवेश के समय 80 प्रतिशत होती है और वह दसवीं की परीक्षा पूर्ण करने से पहले ही विद्यालय त्याग देती है।
5- नेशनल सैम्पल सर्वेक्षण के आधार पर
- 30 प्रतिशत विद्यालयों के ठीक से भवन नहीं हैं।
- स्वच्छ पानी पीने की व्यवस्था लड़कियों के लिये नहीं, पृथक से शौचालय नहीं है।
- 20 प्रतिशत विद्यालयों में केवल एक ही कमरा है। अर्थात उनमें एक ही अघ्यापक है।
- 10 प्रतिशत विद्यालयों में श्याम पट भी नहीं है।
ऐसी स्थिति में नये कानून बनाना बेकार हो जायेगे यदि विद्यालयों की शोचनीय स्थिति में सुधार नहीं लाया गया। अत: प्रथम वरीयता के कार्य प्रथम करें।